पीएम मोदी के इस कदम से बौखलाया चीन, लगाया भेदभाव का आरोप

चीन के वुहान से निकले कोरोना वायरस ने पूरी दुनियां में त्राहिमाम मचा रखा है। जिसे लेकर भारत ने अब बड़ा कदम उठाया है, जिससे चीन बौखलाया गया है। भारत के इस कदम को चीन ने भेदभावपूर्ण बताया। गौरतलब है कि कोरोना महामारी के दौर में तकरीबन सभी देशों की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा गई है, लेकिन वहीं चीन के आर्थिक स्थिति पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा। जिसे लकेर वह लगातार इस महामारी का फायदा उठाकर दूसरे देशों में निवेश कर रहा है। जिसे देख भारत ने अपने FDI पॉलीसी में बड़ा बदलाव कर दिया। चीन ने कहा कि ऐसा करना वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) नियमों और जी-20 में बनी सहमतियों के खिलाफ है। चीन ने भारत से सभी देशों से आने वाले निवेश को समान अनुमति देने की मांग की है।

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गौरतलब है कि भारत सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए भारत के पड़ोसी देशों के लिए अब सरकारी मंजूरी को अनिवार्य कर दिया है। जिसका अर्थ है कि अब अगर कोई भी चीनी कंपनी या किसी और देश की कंपनी भारतीय कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदना चाहती है तो उसे सरकार की मंजूरी लेना जरूरी होगा। अभी हाल ही में भारत में ऐसा ही देखने को मिला था, जब चीन ने एचडीएफसी लिमिटेड (बैंक नहीं) में शेयर खरीदे।

आपको बता दें कि भारत नें विदेशी निवेश दो प्रकार का होता है, 1) एफपीआई फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट और 2)  एफडीआई फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट। बता दें कि एफपीआई के तहत होने वाला इन्वेस्टमेंट सिर्फ 10% तक का होता है। वहीं एफडीआई के अंतर्गत 10% से ज्यादा का निवेश आता है।

अभी तक के नियम के अनुसार, पाकिस्तान और बांग्लादेश के किसी नागरिक या कंपनी को छोड़कर दूसरे किसी भी देश के लोग भारत में एफडीआई के तहत इन्वेस्टमेंट कर सकते थे, लेकिन अभी सरकार ने इस नियम में बदलाव किया है।

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क्या कहते हैं भारत सरकार के नए नियम?

भारत के नये नियम के अनुसार भारत के जो सीमा से लगने वाले देश हैं, अगर उनका कोई भी नागरिक या कंपनी भारत में 10% से ज्यादा का निवेश करती है तो उसे सरकार से अनुमति लेनी होगी। यह इजाजत कैबिनेट स्तर की होगी, इसलिए यह इतनी आसानी से नहीं मिलेगी। इंवेस्ट करने से पहले कंपनी को बताना पड़ेगा कि वह निवेश का कोई गलत इस्तेमाल नहीं करेगी। 10% से कम वाला निवेश सेबी की निगरानी में होगा।

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