दिल्ली हाईकोर्ट में भी तलाक-ए-हसन के विरुद्ध एक मुस्लिम महिला ने याचिका दायर की थी जिस पर जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने दिल्ली पुलिस के साथ-साथ उस मुस्लिम व्यक्ति से जवाब मांगा था जिसकी पत्नी ने तलाक-ए-हसन के नोटिस को चुनौती देते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
क्या है तलक-ए हसन जाने विरोध का असली कारण
तीन तलाक की तरह ही Talaq-E-Hasanमुस्लिम समुदाय से जुड़ी तलाक की एक प्रक्रिया है, जिसमें पति अपनी पत्नी को तीन महीने में तीन बार तलाक तलाक तलाक बोलता है और उसके बाद तलाक स्वीकार कर लिया जाता है. पति द्वारा एक महीने में एक बार तलाक बोला जाता है। फिर दूसरे महीने में दूसरी बार तलाक बोला जाता है. फिर तीसरे महीने में तीसरी बार तलाक बोला जाता है।
तलाक बोले जाने वाले इन तीन महीनों के दौरान शादी तो लागू रहती है, लेकिन अगर इन तीन महीनों के अदंर पति-पत्नी में सुलह नहीं होती है और पति द्वारा तीन महीने में तीन बार तलाक बोलने पर तलाक मान लिया जाता है। लेकिन वहीं अगर दोनों के बीच इस बीच सुलह हो जाती है तो शादी खत्म नही होती ।
ट्रिपल तलाक में तीन बार तलाक बोला जाता था
2017 में तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत को शायरा बानो बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गैर कानूनी घोषित कर दिया था. इसमें मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को एक बार में ट्रिपल तलाक बोलता था और शादी टूट जाती थी।
इसे गैर कानूनी घोषित किए जाने के बाद मुस्लिम महिलाओं ने राहत की सांस ली थी. मगर तीन तलाक की तरह तलाक-ए-हसन का मामला सामने आया है जिसके विरुद्ध याचिकाएं दायर की जा रही हैं।
तलाक-ए-हसन पर लिया सुप्रीम कोर्ट में हुई थी सुनवाई
इससे पहले, जस्टिस ए एस बोपन्ना और विक्रम नाथ की सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ ने Talaq-E-Hasan मामले पर याचिकाकर्ता बेनजीर हीना द्वारा प्रस्तावित प्रस्तावों पर ध्यान दिया था, जिसमें महिलाओं के मौलिक और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ गैर कानूनी और प्रतिगामी के रूप में प्रथा को खत्म करने की मांग की गई थी।
तलाक-ए-हसन की क्या है प्रक्रिया
तलाक-ए-हसन भी तीन तलाक की ही तरह तरह ही है लेकिन ये तब प्रयोग की जानी चाहिए जब पत्नी को मासिक धर्म नहीं हो रहा हो तथा तीनों में प्रत्येक के बीच एक महीने का अंतर होना चाहिए। इस तरह से दोनों के बीच परहेज की समयावधि इन तीन लगातार तलाक के बीच की समय सीमा में होनी चाहिए।
संयम, या ‘इद्दत’ तीन मासिक चक्र या तीन चंद्र महीनों के लिए निर्धारित है। इस संयम की अवधि के दौरान, यदि पति या पत्नी अंतरंग संबंधों में सहवास करना या साथ रहना शुरू कर देते हैं, तो तलाक को खारिज कर दिया जाता है. इस प्रकार के तलाक को स्थापित करने का उद्देश्य ट्रिपल तलाक की बुराई को रोकना था।
कई मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक प्रणाली के माध्यम से तलाक के बहाने अपने ससुराल वालों द्वारा शारीरिक शोषण और हिंसक धमकियों के मामले दर्ज कराये हैं।
याचिका में संबंधित धार्मिक मौलाना को तलाक-ए-हसन को अमान्य करने और किसी भी महिला को शरिया कानून के तहत प्रचलित तलाक का पालन करने के लिए मजबूर नहीं करने का निर्देश देने का भी प्रस्ताव किया गया है।
यहां याचिकाकर्ता ने अपने पति द्वारा भेजे गए पहले तलाक के नोटिस को अमान्य और गैर कानूनी करार देने के लिए अदालत का रुख किया है क्योंकि यह उसके उचित अधिकारों का हनन है।
क्या है कानूनी प्रक्रिया ?
2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने शायरा बानो बनाम भारत संघ के मामले में ट्रिपल तलाक को गैर कानूनी घोषित किया गया था। इस प्रकार के तलाक में, तीन तलाक में पति एक ही बार में तीन बार तलाक की घोषणा करता है, जबकि तलाक-ए-हसन में तीन बार में तीन तलाक कहकर शादी खत्म की जाती है।
तलाक-ए-हसन के नाम से जानी जाने वाली इस्लामी तलाक प्रक्रिया को जनहित याचिका दायर कर अदालत में चुनौती दी गयी थी।
तलाक-ए-हसन की प्रथा को खत्म करने की मांग
याचिकाकर्ता बेनजीर हीना ने तलाक के इस्लामी रूप Talaq-E-Hasan को गैर कानूनी घोषित करने के लिए वकील अश्विनी दुबे के माध्यम से एक याचिका दायर की, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का हनन करता है।
हिना ने कोर्ट से गुहार लगाई कि मुस्लिम पर्सनल लॉ आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2, जो मुसलमानों को एकतरफा तलाक का अभ्यास करने की अनुमति देती है, को खत्म करना आवश्यक है।
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