हमीद का जन्म 1 जुलाई सन 1933 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के एक छोटे से गांव धामपुर में हुआ था।
बचपन से ही हामिद का दिल अपने देश के लिए धड़कता था। पढ़ाई तो तनिक भी नहीं सुहाती थी।
मन में बस एक ही ललक कि बड़ा होकर देश की सेवा करना है।
पिताजी पेशे से दर्जी थे, वे सिलाई करके पूरे परिवार का पेट पालते थे।
जब भी पिताजी उनको अपने सिलाई की दुकान पर ले जाना चाहते तो वह मना कर देते थे।
दादी के पूछने पर- कि इतने बड़े हो गए हो अब क्या करोगे ?
वह अपनी भाषा में यह मुस्कुराते हुए कहते थे
कि- “हम जाइब फौज में तोहरे रोके ना रुक आईब हम”
खैर अपने इन्हीं सपनों को पंख लगाते बनारस पहुंच गए सिपाही बनने,
वहाँ जवान ने पूछा परेड आती है करके बताओ जरा,
जवान यह देखकर दंग रह गए कि परेड करते समय हमीद के पैर बराबर जमीन पर पड़ते।
जवान ने फिर पूछा- परेड कहीं सीखी है क्या?
हमीद ने मुस्कुराते हुए कहा- हमने लकड़ी सीखी है
इसके बाद क्या था हमीद को अपनी मनचाही उड़ान मिल गई थी।
देश पर मर मिटने की कसमें खाने वाला लड़का आज देश का सिपाही बन गया था।
जल्द ही हमीद ABDUL HAMID को देश सेवा का मौका मिल गया जब चीन ने भारत पर सन 1962 में आक्रमण कर दिया, यह समय हमीद के असीम शौर्य की परीक्षा थी, और उन्होंने इसे पूरा करके भी दिखाया, चीन के खिलाफ बड़ी बहादुरी से लड़े, जिसकी बदौलत अब वह भारतीय सेना में अपनी कंपनी के क्वार्टर मास्टर बन गए।
साल था सन 1965 जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया, पाकिस्तान को अपनी मंगनी के पैटंन टैंकों पर बड़ा नाज था।
1965 के भारत-पाक युद्ध में हमीद ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह भारत मां के सच्चे सपूत है।
भारत का खेमकरण सेक्टर जहां हमीद अपनी आर्टिलरी के साथ तैनात थे। पाकिस्तानी फौज आगे बढ़ते चली आ रही थी।
लेकिन हमीद ने अपनी वीरता से दुश्मनों को नाकों चने चबा दिए। हमीद ने खुद पाकिस्तानी के मंगनी वाले 2 पैटन टैंकों को धराशाई कर दिया।
हमीद ने अपने असीम शौर्य का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सेना को आगे बढ़ने नहीं दिया और लड़ते रहे। अचानक ही कोई ऐसी चीज उनके सीने पर आकर लगी। फिर भी वह लड़ते रहे। आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा था। अपनी जिंदगी की अंतिम सांस तक वह देश के लिए लड़ते रहे। और वीरगति को प्राप्त हुए। लेकिन दुश्मनों को आगे बढ़ने नहीं दिया।
अंत में भारत की जीत हुई और हमीद को उनके असीम शौर्य के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
बचपन में हमीद जो सपना देखा करते थे उस सपने को उन्होंने पूरा तो किया लेकिन इसके लिए उन्होंने देश के लिए अपनी कुर्बानी दे दी।
प्रसिद्ध लेखक,कवि,शायर राही मासूम रजा बड़े गौरवान्वित होकर लिखते हैं कि
” मैं भी गाजीपुर का हूं और हमीद ने गाजीपुर को
एक अनोखी सौगात भेजी है, पहले गाजीपुर अफीम की कोठी और केवड़ा गुलाब जल के लिए जाना जाता था, लेकिन अब यह हमीद-रक्त के लिए जाना जाता है, यह इस जिले की सबसे बड़ी पैदावार है।
धन्य है वह मां बकरीदन जिसने भारत के इस बहादुर सपूत को जन्म दिया”
हमीद भारत की उन 21 परमवीर चक्र विजेताओं में से एक हैं, जिन्होंने देश को सर्वोपरि समझते हुए। अपने असीम शौर्य का परिचय दिया।
ऐसे भारत माता के वीर सपूत को हमारा शत शत नमन है। जय हिंद जय भारत।
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